अखण्ड भारत..
कब कब बंटा?
बाकायदा मैप में वर्ष लिखा है।आइए जाने की कैसे ये इलाके भारत से अलग हुए।
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अफगानिस्तान 1876
इस वर्ष अफगानिस्तान के अमीर ने, ब्रिटिश राजदूत को अपने दरबार से भगा दिया। लार्ड लिटन चिढ़ गए।
चढ़ गए, काबुल पर।
वहां चढ़ना आसान है, उतरना नही।
दो तीन साल में ब्रिटिश, लुट पिट कर लौट आये। अंग्रेजो की नालायकी से 1876 में यह देश हिन्दुओ के हाथ से चला गया।
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ब्रम्हदेश 1937
तो हुआ ये की अंग्रेजो ने भारत जीता।
अंग्रेजो ने बर्मा भी जीता।
प्रशासन के लिए भारत मे फुल फ्लेजेड वाइसराय दिया, लेकिन बर्मा में नही। दिल्ली के वायसराय को ही बर्मा का चार्ज दे दिया।
अब दोनों देश एक ही बॉस के अंडर थे। लेकिन 1935 में इंडिया गर्वनेंस एक्ट आया, जिसके तहत 1937 से इंडिया में, चुनाव से राज्य सरकारे बनी।
कहीं कांग्रेस का सीएम, कहीं मुस्लिम लीग का बना, वैसे ही बर्मा में भी हुआ। वहां की लोकल सरकार बनी।
और दिल्ली के वाइसराय से उसका एडिशनल चार्ज हटाकर, अंग्रेजो ने रंगून में अलग गर्वनर बिठा दिया।
अलग गवरमेंट, अलग देश। इस तरह 1937 में ब्रह्नदेश याने बर्मा भी हिन्दुओ के हाथ से निकल गया।
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तिब्बत 1914
चीन किंगडम और ब्रिटिश के बीच, तिब्बत बॉर्डर को लेकर 50 साल से किचकिच चल रही थी। 1911 में चीन की डायनेस्टी ढह गई, सुन यात सेन की सरकार आई।
जरा कमजोर सरकार थी। ब्रिटिश ने मौका ताडा, और तिब्बत के इलाकाई सरदारों को डरा धमका कर शिमला बुलाया। उनसे मनमर्जी की बार्डर लाइन साइन करवा ली।
तो इसी शिमला समझौते से मैकमैहन रेखा पैदा हई। ब्रिटिश खुश।
चीनी नाराज। कहते है, हमसे पूछा नही, तुम तिब्बती पटवारी तहसीलदारों को डराकर इंटरनेशनल बार्डर साइन करवा लिए।
चाइना तभी से शिमला कांफ्रेंस के बार्डर, याने मैकमैहन लाइन को मान्यता देने से इनकार करता है।
हिन्दुओ का रोना अलगे है। उनको लगता है, कि मैकमैहन लाइन खींचकर, ब्रिटिश 1914 में वो बार्डर ट्रीटी साइन नही करवाते, तो तिब्बत पूरा का पूरा उनका होता।
खैर, तो इस तरह 1914 में तिब्बत हिन्दुओ के हाथ से निकल गया।
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नेपाल 1904 में भारत के चंगुल से कैसे आजाद हुआ, पता लगाना कठिन है। इस साल ऐसा कुछ नही हुआ।
हां 1923 में ब्रिटिश ने नेपाल से एक सन्धि की थी। जिसमे उन्होंने नेपाल को स्वतंत्र देश का दर्जा दिया। नक्शे में शायद मिसप्रिंट हो गया है।
दरअसल सुगौली की सन्धि (1816) के बाद से कमोबेश खटपट रहती थी। अंग्रेजो ने 1923 में अपने रिश्ते ठीक कर लिए। उनको साँवरिन दर्जा दे दिया।
और नेपाल हिन्दुओ के हाथ से निकल गया।बूहूहू।
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फिर अंग्रेज पाकिस्तान को भारत से अलग करके 1947 में निकल गए,
धर्म के आधार पर!!
पाकिस्तान से बंगलादेश 1971 में निकल गया, भाषा के आधार पर।।
अब देश की परिभाषा, धर्म और भाषा के आधार पर तय करोगे, कई टुकड़े बनेगे ही। तो गलत परिभाषा के कारण, पाक, बंगाल भी हिन्दुओ के हाथ से निकल गए।
धर्म के आधार पर राष्ट्र बनाने का नशा फिर से जोरो पर है। तो जो बचा है, पकड़ के रखिये, जाने कब निकल जाए।
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पर इस नक्शे में कमियां है।
इसमे अभी और भी देश जुड़ेंगे।
पहले इस नक्शे का लॉजिक समझना होगा।
अफगानिस्तान हमने कभी नही जीता (मौर्य युग में कुछ पार्ट छोड़कर) बल्कि असलियत यह है कि वहां वालो ने हमको बार बार जीता।
जैसे बैक्ट्रीयन्स, कुषाण, मुगल।
और ब्रिटिश।
इनके दौर में दोनों इलाके एक ही विदेशी शासक के अधीन रहे,तो इसलिए अफगानस्थान हमारा है।
ठीक वैसे ही बर्मा भी ब्रिटिश ने जीता, हम दोनों देश को एक साथ गुलाम रखा। इसलिए ब्रम्हदेश भी हमारे अखण्ड भारत के नक्शे में है।
ठीक उसी लॉजिक से कण्डदेश भी हमारा है मितरों।
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बोले तो कनाडा.. !!!
वो भी हमारे साथ साथ, अंग्रेजो के अधीन था। 1867 में हिन्दुओ के हाथ से निकल गया। USA को जार्ज वाशिंगटन ने हिन्दुओ के हाथ से 1776 में छीन लिया।
अस्त्रालय 1901 में अंग्रेजो ने अलग कंट्री बना दी, सुसरा हाथ से जाता रहा।
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सबसे खराब काम वीर सावरकर और RSS ने किया। यदि उन्होंने स्वतन्त्रता का पेंशनखोर आंदोलन नही चलाया होता, तो अंग्रेज आज भी यहां राज कर रहे होते।
तो लंददेश (लन्दन) आर्यदेश (आयरलैंड) शकटदेश (स्कॉटलैंड) कुँवारा द्वीप (विरजिन आइलेण्ड) सब हमारे दावे में होते।
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दरअसल ये मैप छापने वाले हिन्दू बड़े जीनियस हैं।अपने राज्य विस्तार के काम मे औरो को लगाते हैं।
पहले खुद को, दूसरों को जीतने देते हैं। फिर उनके द्वारा जीते, दुनिया भर के सारे इलाको पर दावा जताते है।
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नक्शा बताता है, कि यह एक कामयाब रणनीति है। इसी के तहत, वे चीन को अपनी जमीन पर बस्तियां बसाने दे रहे हैं। एक बार वह तमिलनाडु तक बस्तियां बना ले..
फिर इस नक्शे में सारा चीन भी जोड़ देंगे।
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मनीष सिंह